बूझो तो जाने
मदनपुर नगर में वीरवर नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में एक वैश्य हिरण्यदत्त रहता था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी।
एक दिन की बात है कि मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त भी अपने मित्र के साथ घूमने आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उस पर मोहित हो गया । घर लौटकर वह सारी रात भर उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन सुबह ही वह फिर बाग़ में गया। मदनसेना वहाँ अकेली ही बैठी थी। उसके पास जाकर उसने कहा, कि तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण तयाग दूँगा।![बेताळ बेताळ](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVX4lqYGyFEtHMRzjF65ZVDJCw1MwCsA3GPcmTEH9k4fXzkQCZdl7c6-F-OuQxiasOtG2yJ1VMLrW8YOxysBL1p-eMxmRtPTFR9aXNxMn9BbqY6Q-6GxxfYVilpdiDwIH18EmBb83GgCQ/s1600/index.jpg)
मदनसेना ने जवाब दिया, कि आज से पाँचवे दिन मेरी शादी होने वाली है। मैं तुम्हारी कभी नहीं हो सकती।
वह बोला, तो मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता इतना सुनते ही मदनसेना डर गयी। बोली, वह अच्छी बात है। मेरा ब्याह हो जाने दो। मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे ज़रूर मिलूगी
यह वचन देके मदनसेना डर गयी। उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, कि अगर आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो एक बात आपसे कहना चाह्ती हूं। पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी। सारी बात सुनकर उसके पति ने सोचा कि यह बिना जाये मानेगी तो नहीं,इसे रोकना बेकार है। उसने उसे जाने की आज्ञा दे दी।
मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर पूरा शिंगार करके चली गई । रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया। मदनसेना ने कहा, तुम मुझे छोड़ दो। मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।
चोर बोला, मुझे गहने नही मैं तो तुम्हें चाहता हूँ। मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा, पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।
चोर ने उसे छोड़ दिया।
मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी हो?
मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर हुआ । उसने उसे छोड़ दिया तथा जाने दिया । फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और वह उसे अपनी धरम की बहन मान लिया व उसे घर पर छोड़ गया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने सारा हाल कह सुना तो बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा।
इतना कहकर बेताल बोला, हे राजा! बताओ, पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन सबसे अधिक त्यागी है?
राजा ने कहा, चोर। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।
राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे लेकर चला तो उसने यह कथा सुनायी
मदनपुर नगर में वीरवर नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में एक वैश्य हिरण्यदत्त रहता था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी।
एक दिन की बात है कि मदनसेना अपनी सखियों के साथ बाग़ में गयी। वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त भी अपने मित्र के साथ घूमने आया हुआ था। वह मदनसेना को देखते ही उस पर मोहित हो गया । घर लौटकर वह सारी रात भर उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन सुबह ही वह फिर बाग़ में गया। मदनसेना वहाँ अकेली ही बैठी थी। उसके पास जाकर उसने कहा, कि तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं प्राण तयाग दूँगा।
![बेताळ बेताळ](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjVX4lqYGyFEtHMRzjF65ZVDJCw1MwCsA3GPcmTEH9k4fXzkQCZdl7c6-F-OuQxiasOtG2yJ1VMLrW8YOxysBL1p-eMxmRtPTFR9aXNxMn9BbqY6Q-6GxxfYVilpdiDwIH18EmBb83GgCQ/s1600/index.jpg)
मदनसेना ने जवाब दिया, कि आज से पाँचवे दिन मेरी शादी होने वाली है। मैं तुम्हारी कभी नहीं हो सकती।
वह बोला, तो मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता इतना सुनते ही मदनसेना डर गयी। बोली, वह अच्छी बात है। मेरा ब्याह हो जाने दो। मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे ज़रूर मिलूगी
यह वचन देके मदनसेना डर गयी। उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, कि अगर आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो एक बात आपसे कहना चाह्ती हूं। पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी। सारी बात सुनकर उसके पति ने सोचा कि यह बिना जाये मानेगी तो नहीं,इसे रोकना बेकार है। उसने उसे जाने की आज्ञा दे दी।
मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर पूरा शिंगार करके चली गई । रास्ते में उसे एक चोर मिला। उसने उसका आँचल पकड़ लिया। मदनसेना ने कहा, तुम मुझे छोड़ दो। मेरे गहने लेना चाहते हो तो लो।
चोर बोला, मुझे गहने नही मैं तो तुम्हें चाहता हूँ। मदनसेना ने उसे सारा हाल कहा, पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।
चोर ने उसे छोड़ दिया।
मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची। उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी हो?
मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उसका बड़ा गहरा असर हुआ । उसने उसे छोड़ दिया तथा जाने दिया । फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और वह उसे अपनी धरम की बहन मान लिया व उसे घर पर छोड़ गया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने सारा हाल कह सुना तो बहुत प्रसन्न हुआ और उसके साथ आनन्द से रहने लगा।
इतना कहकर बेताल बोला, हे राजा! बताओ, पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन सबसे अधिक त्यागी है?
राजा ने कहा, चोर। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है। धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।
राजा का यह जवाब सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे लेकर चला तो उसने यह कथा सुनायी
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