कौए की चतुराई
बुद्धि नामक कौआ नंदनवन में रहता था। वह कौओं का नेता था। नंदनवन के पशु-पक्षी, कौओं की पूरी जमात को नापसंद करते थे। उन्हें किसी भी समारोह में नहीं बुलाते थे। सारे कौए यह देखकर बहुत
दुखी होते थे। नंदनवन के नए राजा टाइगर सिंह राजा शेरसिंह के बेटे थे। राजा शेरसिंह अचानक बीमारी में चल बसे। इसलिए आनन-फानन में टाइगर सिंह को नंदनवन का नया रोजा घोषित कर दिया गया। टाइगर सिंह को राजकाज चलाने का अनुभव नहीं था।
नंदनवन के मंत्री बग्गू सियार, सेनापति चंकी बंदर और सलाहकार रॉबिन खरगोश राजा टाइगर सिंह को सभी जानकारी देते थे। कौओं को पशु-पक्षी घौंसले भी नहीं बनाने देते थे। एक दिन बुद्धि कौए ने अपने लिए मेहनत करके सुंदर सा घोंसला बनाया। बुद्धि कौए की पत्नी ने उस घोंसले में अंडे दिए। सुबह होने पर कौए और कौवी दोनों भोजन की तलाश में अंडों को छोड़कर घोंसले से बाहर निकल गए। उसी समय बंदरों के एक समूह ने कौए के घोंसले के साथ ही उनके अंडों को भी तोड़ डाला। सभी कौए यह देखते रहे। उन्होंने विरोध करने की कोशिश की तो अनेक पशु-पक्षियों ने मिलकर कई कौओं को घायल कर दिया।
अनेक जख्मी कौए घायलावस्था में रोने-चिल्लाने लगे। शाम को जब बुद्धि कौआ और कौवी वापस लौटे तो सभी कौओं को घायलावस्था में देखकर वे काफी परेशान हुए। जब कौवी ने अपने घोंसले को टूटी-फूटी अवस्था में देखा तो वह अंडों को ढूंढ़ने लगी। कौवी के अंडे टूट चुके थे। यह देखकर वह बुरी तरह रोने लगी। सभी कौए उसे ढांढ़स बंधाने लगे। यह देखकर बुद्धि कौआ बोला, ‘यह तो सरासर अन्याय है। आखिर हम कब तक इस अन्याय को सहन करेंगे?’ कल्लू नामक कौआ बोला, ‘भाई, हम सब तुम्हारी बात से सहमत हैं। आखिर कब तक हम अत्याचार बर्दाश्त करते रहेंगे? अरे कोयल भी तो काली होती है, लेकिन उसे तो सब सिर आंखों पर बैठाते हैं। इसकी शिकायत तो हमें राजा से करनी ही होगी।’
आखिर सभी कौए मिलकर राजा टाइगर सिंह के पास पहुंचे। कौओं को लहूलुहान देखकर टाइगर चिंतित होकर बोला, ‘यह सब क्या है? किसने तुम सबकी ऐसी हालत की है?’ यह सुनकर बुद्धि बोला, ‘महाराज, हमारे नंदनवन के पशु-पक्षियों ने ही हमें मिलकर मारा-पीटा है। वह हमारा मजाक उड़ाते हैं कि हम बदसूरत हैं। हम नंदनवन में रहने के काबिल नहीं हैं। अब आप ही बताइए, हमारी शक्ल बदसूरत है तो इसके जिम्मेदार हम हैं?’ यह सुनकर टाइगर सिंह बोला, ‘यह तो बहुत गलत बात है। आखिर सुंदर और बदसूरत होने से किसी व्यक्ति के गुणों का पता थोड़े ही चलता है।’ उनकी फरियाद सुनकर टाइगर सिंह ने पूरे नंदनवन के पशु-पक्षियों की आपातकालीन सभा बुलाई। सभा में सभी पशु-पक्षी उपस्थित थे। यह देखकर टाइगर सिंह बोले, ‘मुझे कुछ समय पहले पता चला कि हमारे वन के पशु-पक्षी कौओं को अपने समूह का हिस्सा नहीं समझते और आज तो आप सभी ने उन पर जानलेवा हमला किया है। यह सरासर गलत बात है। इसके लिए आप सभी को दंड दिया जाएगा।’
टाइगर सिंह की बात सुनकर चंद्रू लोमड़ी बोली, ‘महाराज, एक तो काले कौए, ऊपर से इनकी गंदी आवाज। अरे, इनमें एक भी तो गुण नहीं, भला हम इन्हें अपने साथ शामिल क्यों करे?’ पंकुल मोर इतराते हुए बोला, ‘हम जैसे सुंदर जीवों से भला इन काले कौओं का क्या मुकाबला? अरे इन्हें तो किसी दूरदराज जगह में छिपकर रहना चाहिए।’ मिष्ठी कोयल व्यंग्य करते हुए बोली, ‘अरे काले और बदसूरत हो, लेकिन आवाज में तो मधुरता लाओ।’
मिष्ठी कोयल की बात से बुद्धि कौए को बहुत दुख पहुंचा। वह मिष्ठी से बोला, ‘मिष्ठी कम से कम तुम तो हमारे साथ रहो।’ यह सुनकर मिष्ठी ने मुंह बिचकाया और एक ओर को बैठ गई।
सबकी बातें सुनकर टाइगर सिंह नंदनवन के पशु-पक्षियों को डांटते हुए बोला, ‘तुम सबको शर्म आनी चाहिए। तुम लोग रूप व गुणों के कारण एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश कर रहे हो। अरे, तुम्हें तो मिलकर नंदनवन को और अधिक खूबसूरत व हरा-भरा बनाने पर ध्यान देना चाहिए। मैं तुम्हारी इस नकारात्मक और घटिया सोच को देख रहा हूं। आज मुझे शर्म आ रही है कि मैं यहां का राजा हूं। आज से यहां सब बराबर हैं। सब मिल कर रहेंगे और एक-दूसरे के साथ सम्मान व प्रेम से पेश आएंगे।’ अपने राजा की बातों को सभी चुपचाप सुनते रहे। सभी ने सिर झुकाकर राजा की शर्तो और बातों को मानने की सहमति जताई और अपनी गलती के लिए माफी मांगी।
सभा खत्म होने पर सभी अपने-अपने घरों को चले गए। लेकिन मिष्ठी कोयल अभी भी नाखुश थी। वह जाते-जाते कौओं से बोली, ‘देखना, तुम्हें तो यहां से भागना ही होगा। मुझे तो कौए की बिरादरी से बेहद नफरत है।’ मिष्ठी की बात सुनकर सभी कौए एक-दूसरे की ओर देखने लगे। जब मिष्ठी वहां से चली गई तो बुद्धि कौआ बोला, ‘बाकी सबकी अक्ल तो ठिकाने आ गई है, लेकिन मिष्ठी को सबक सिखाना जरूरी है।’ इसके बाद उसने एक योजना बनाई और सभी कौए इस योजना पर बहुत खुश हुए। एक कौवी अंडे देने वाली थी। वह चुपके से मिष्ठी के घौंसले में गई और वहां पर अंडे देकर आ गई। मिष्ठी के अंडे भी वहां पर थे। वह उन अडों में फर्क नहीं कर पाई और उन्हें पालने लगी। कुछ ही समय बाद जब कौवी के अडों में से बच्चे निकले तो मिष्ठी हैरानी से उन्हें देखने लगी। यह देखकर बुद्धि कौआ बोला, ‘क्यों मिष्ठी, कैसी रही? देखी हमारी चतुराई। हमारी चतुराई के कारण तुमने हमारे अंडों को अपना समझकर पाला। अब कहो।’ मिष्ठी को कोई जवाब देते नहीं बना।
इस तरह कौए की चतुराई दुनिया में प्रसिद्ध हो गई और कौओं की बिरादरी अपने अंडों को कोयल के घौंसलों में रखने लगी। बस तभी से कोयल अपने व कौए के अंडों में अंतर नहीं कर पाती है और कौए के अंडे से बच्चे कोयल के घौंसलों में से ही निकलते हैं। यह देखकर कोयल हाथ मलती रह जाती है और कौए के बच्चे अपने झुंड में जा मिलते हैं।
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