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शेखचिल्ली की बेरोजगारी

शेखचिल्ली की बेरोजगारी

शेखचिल्ली की बेरोजगारीशेखचिल्ली की बेरोजगारी से उसकी मां तंग आ गई थी। घर पर पड़े-पड़े राशन तोड़ने के सिवा शेखचिल्ली को कोई काम न था। घर से बाहर निकलता तो गांव वाले उसकी मजाक बनाते थे।

एक दिन उसकी मां ने शेखचिल्ली से कहा- यों निठल्लों की तरह दिन भर पड़े रहने से अच्छा है कि शहर जाकर कोई

अगले दिन शेखचिल्ली की मां ने शेखचिल्ली के लिए एक कपड़े में चार रोटी और प्याज बांध दी और शेखचिल्ली को काम खोचने के वास्ते चलता कर दिया।

अब शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली। कामधाम तो क्या खोजते, रास्ते में एक जंगह पड़ा, वहीं एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगे।

नींद की एक झपकी निकालने के बाद उसने सोचा कि चलो रोटी खा ली जाए। शेखचिल्ली को नजदीक ही एक कुआं नजर आया। शेखचिल्ली जाकर सीधे उस कुएं की दीवार पर बैठ गया और कपड़े में बंधी रोटी और प्याज को खोला।

रोटियां देखकर शेखचिल्ली जोर से बोला- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं...

उस कुएं के अंदर चार परियां रहती थीं। उन्होंने जैसे ही शेखचिल्ली की आवाज सुनी, वो डर गईं, उनको लगा कि आज कोई उनको खाने आ गया है।

डर के घबराई परियां कुएं से बाहर निकल आईं और बोलीं- नहीं नहीं हमें मत खाओ, हमें मत खाओ, हम तुम्हारी मदद करेंगी, तुम जो मांगोगे वही तुमको देंगी।

शेखचिल्ली को कुछ समझ नहीं आया कि आखिर हुआ क्या? फिर उसने अपनी चार रोटियों से उन परियों की संख्या को जोड़ा और तब उसको समझ आया कि मामला क्या है।

खैर, उसको लगा कि परियां जब उसकी मदद करने को तैयार हैं तो क्यों न इन्हीं से कुछ मदद मांग ली जाए।

शेखचिल्ली ने कहा कि तुम सब मेरी क्या मदद कर सकती हो, मैं तो बेरोजगार हूं, मेरे पास न धन है और न नौकरी। घर में गरीबी का आलम है।

परियों ने कहा- कोई बात नहीं है हम तुमको एक ऐसी थैली दे देते हैं जिसमें से तुम जब चाहोगे तब पैसे निकाल पाओगे।

उनमें से एक परी ने अपनी छड़ी घुमाई और एक खूबसूरत मखमली थैली शेखचिल्ली को दे दी।

देखने में वो थैली खाली लग रही थी, लेकिन जैसे ही शेखचिल्ली ने उसमें हाथ डाला उसमें से उसे सोने की मोहरें मिलीं।

शेखचिल्ली बहुत खुशी-खुशी वापस अपने गांव लौटने लगा। लौटते वक्त रास्ते में अंधेरा हो गया।

उसने देखा कि नजदीक ही एक छोटा सा गांव है। वो उस गांव में गया और एक व्यापारी के घर पहुंचा। शेखचिल्ली ने उस व्यापारी से रात भर रुकने की जगह मांगी।

व्यापारी ने कहा- मेरा काम धंधा सब चैपट पड़ा हुआ है। मैं तुमको रुकने की जगह तो दूंगा, लेकिन बदले में तुम मुझे क्या दोगे।

शेखचिल्ली ठहरे पूरे शेखचिल्ली, फट से अपनी थैली व्यापारी को दिखाई और पूछा- तुमको कितना पैसा चाहिए, मैं तुमको उतना पैसा दे सकता हूं। मेरे पास ये जादूई थैली है। इसमें से जितने चाहो उतने पैसे निकाल सकते हो।

व्यापारी ने शेखचिल्ली से दस मोहरें मांगीं। शेखचिल्ली ने झट से अपनी थैली में से दस मोहरें निकाल कर दे दीं।

व्यापारी ने शेखचिल्ली को ठहरने की जगह दे दी। और शेखचिल्ली जाकर कमरे में पसर गया। लेकिन इधर व्यापारी के मन में लालच आ गया।

जैसे ही रात को शेखचिल्ली की आंख लगी, व्यापारी ने शेखचिल्ली की थैली बदल दी।

शेखचिल्ली सुबह उठा और खुशी-खुशी अपने गांव को चला।

घर पहुंचकर उसने अपनी मां से कहा- मां आज से हमारे बुरे दिन खत्म समझो। अब हमें कभी पैसे की कोई दिक्कत नहीं होगी। मुझे एक ऐसी थैली मिल गई है, जिसमें से जितने चाहो उतने पैसे मिल जाते हैं। बता तुझे कितने पैसे चाहिएं।

मां बोली- मुझे क्या पैसे चाहिए। बनिये की दुकान का उधार बढ़ता जा रहा है उसे चुकाने के लिए कुछ पैसे दे दे बस।

शेखचिल्ली ने कहा- बस इतनी सी बात ये लो अभी दिए देता हूं।

लेकिन शेखचिल्ली ने जैसे ही थैली में हाथ डाला उसमें से कुछ निकला ही नहीं। थैली एकदम खाली थी। शेखचिल्ली हक्का-बक्का रह गया।

उसकी मां ने अपना माथा पीट लिया। बोली- ऐसा बावला लड़का मिला है। भला ऐसे भी कहीं जादू की थैली होती है। चल जा यहां से मेरा वक्त बर्बाद मत कर।

मां को शेखचिल्ली की किसी भी बात का यकीन नहीं हुआ।

शेखचिल्ली बहुत दुखी हुआ।

अगले दिन मां ने फिर उसे चार रोटियां कपड़े में बांध कर रख दीं। शेखचिल्ली फिर घूमता-घामता उसी जंगल में पहुंचा और कुएं के पास बैठ गया।

जब भूख लगी तो उसने फिर अपनी पोटली खोली और लगा जोर से चिल्लाने- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं....

शेखचिल्ली की ये आवाज सुनकर परियां फिर डर गईं और कुएं से बाहर निकल आईं।

उन्होंने कहा- नहीं नहीं हमें मत खाओ, बोलो तुमको क्या चाहिए।

शेखचिल्ली ने कहा- क्या खाक चाहिए। कल तुमने जो थैली दी थी, उसने घर जाकर काम करना बंद कर दिया। उसमें से एक भी पैसा नहीं निकला। अब मेरे घर का चूल्हा कैसे जलेगा।

उनमें से दूसरी परी बोली- लो आज मैं तुमको एक कढ़ाई देती हूं। इस कढ़ाई को जाकर चूल्हे पर चढ़ा देना, फिर इसमें से जितना चाहो, जैसा चाहो खाना पकाना। इस कढ़ाई में खाना खुद पक जाता है, और तब तक खत्म नहीं होता जब तक तुम्हारी जरूरत खत्म न हो।

शेखचिल्ली ने कढ़ाई ले ली और घर की तरफ चल दिया। रास्ते में फिर अंधेरा हो गया। शेखचिल्ली फिर उसी व्यापारी के घर रात बिताने पहुंच गया।

व्यापारी को लगा कि आज भी इसके पास कोई खास चीज जरूर होगी। वो ढोंग करता हुआ बोला भैया व्यापार पूरी तरह डूबा हुआ है, आज तो मेरे घर में चूल्हा भी नहीं जला। बच्चे भूखे ही सो गए।

शेखचिल्ली को उस पर दया आ गई। वो बोला- भोजन का इंतजाम मैं किए देता हूं।

उसने झट से अपनी कढ़ाई निकाली और कई तरह के व्यंजन बनाकर व्यापारी को दे दिए।

व्यापारी ने सारे व्यंजन अपने घर में रख लिए और शेखचिल्ली को सोने के लिए कमरा दिखा दिया।

शेखचिल्ली जैसे ही कमरे में जाकर सोया, व्यापारी ने उसकी कढ़ाई बदल दी।

सुबह उठकर शेखचिल्ली जब अपने घर गया तो उसने खुशी-खुशी अपनी मां से कहा- मां आज से तेरी सारी चिंता खत्म। जितना चाहो उतना खाना पकाओ। वो भी बिना किसी मेहनत के। ये लो मेरी करामाती कढ़ाई।

लेकिन शेखचिल्ली ने जैसे ही कढ़ाई में खाना पकाने की कोशिश की उसमें से कुछ नहीं निकला।

उसकी मां ने फिर माथा पीट लिया, कि उसने भी कैसे बावले लड़के को जन्म दिया।

अगले दिन शेखचिल्ली की मां ने फिर से चार रोटी प्याज के साथ कपड़े में बांध दीं।

शेखचिल्ली फिर उसी कुएं पर जा पहुंचा और जाते ही बोला- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों ही खा जाऊं...

कुएं में से फिर चारों परियां बाहर आईं और बोलीं- अब तुम हमें क्यों खाना चाहते हो, हमने तो तुमको खाने और कमाने के लिए सामान दे ही दिया।

शेखचिल्ली ने कहा- क्या खाक सामान दिया है, तुम्हारा दिया सामान घर जाकर काम नहीं करता। मेरी मां पर तन ढकने तक के कपड़े नहीं हैं और तुम हमारे साथ ऐसा मजाक कर रही हो।

उनमें से तीसरी परी बोली- तुम्हारे कपड़ों का बंदोबस्त मैं किए देती हूं।

उसने अपनी जादूई छड़ी घुमाई और उसके हाथ में एक खूबसूरत टोकरा आ गया।

उसने शेखचिल्ली से कहा- इस टोकरे में तुम जब भी हाथ डालोगे तुम्हें तुम्हारे काम के कपड़े मिल जाएंगे।

शेखचिल्ली ने वो टोकरा लिया और अपने गांव की ओर चल दिया। रास्ते में फिर अंधेरा हो गया तो वो फिर उसी व्यापारी के घर पहुंचा। व्यापारी तो पहले से ही उसका इंतजार कर रहा था। उसने शेखचिल्ली का बड़ा इस्तकबाल किया।

व्यापारी फिर से शेखचिल्ली के सामने अपना रोना रोने लगा। बोला- क्या बताऊं भाई, हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। घर में पहनने-ओढ़ने तक के कपड़े खत्म हो गए। बच्चे नंगे घूमते फिरते हैं। व्यापार चैपट हो गया। समझ नहीं आता क्या करूं।

शेखचिल्ली ने कहा तुम्हारे बच्चों और तुम्हारे पूरे परिवार के लिए मैं सालभर के कपड़े अभी दिए देता हूं।

उसने अपने टोकरे में हाथ डाला और तरह-तरह के कपड़े उसमें से निकाल दिए। सुंदर-सुंदर साडि़यां, कुर्ते-प्यजामे, बच्चों की फ्राॅक, सूट आदि आदि। व्यापारी बहुत खुश हुआ।

रात को जैसे ही शेखचिल्ली सोया, व्यापारी ने उसका टोकरा बदल दिया।

अगले दिन जब शेखचिल्ली अपने घर पहुंचा, तो जाते ही अपनी मां से बोला- मां बता तुझे कैसी साड़ी पहननी है।

मां बोली- अरे कमबख्त आजा आज तू, रोज-रोज नई-नई कहानी सुनाकर मेरा मन बहलाता है। तू निरा निखट्टू है। तेरे हाथ की साड़ी मेरे नसीब में नहीं है।

शेखचिल्ली ने कहा- नहीं, नहीं मां, मेरा यकीन कर मेरे पास ये जादूई टोकरा है। ये देख मैं तुझे अभी मलमल की एक साड़ी देता हूं।

शेखचिल्ली ने जैसे ही टोकरे में हाथ डाला उसमें से कुछ नहीं निकला।

उसकी मां को बहुत गुस्सा आया। उसने कहा- आज मैं तुझे नहीं छोडूंगी। नौकरी न मिले कोई बात नहीं। लेकिन रोज मुझे नई कहानी सुनाता है। ठहर जरा।

और मां ने अपनी झाडू उठाई लगी शेखचिल्ली पर बजाने। शेखचिल्ली को समझ नहीं आ रहा था, कि कैसे अपनी मां को समझाए।

अगले दिन फिर से उसकी मां ने चार रोटियां बांध दीं।

शेखचिल्ली गुस्से में लाल-पीला होता हुआ जंगल में उस कुएं पर पहुंचा और जोर से चिल्लाया- एक खाऊं, दो खाऊं, तीन खाऊं या चारों खा जाऊं...

अंदर से चारों परियां निकल आईं, हमें मत खाओ, हम तुम्हारी मददगार हैं।

शेखचिल्ली पूरा गुस्से में था- उसने कहा, तुम और मददगार! तुमने जो मेरा मजाक उड़वाया है, मैं तुमको अब नहीं छोडूंगा। तुम्हारा दिया एक भी सामान घर पहुंचकर काम नहीं करता। बस उस व्यापारी के घर तक काम करता है।

परियों ने पूछा- कौन से व्यापारी के घर पर?

शेखचिल्ली ने बताया- वो जिसके घर मैं रास्ते में रात को रुकता हूं।

परियों को समझते देर नहीं लगी। उन्होंने शेखचिल्ली से कहा- ये सारी गड़बड़ उसी व्यापारी ने की है। तुम्हारा असली सामान उसने चुरा लिया और नकली तुमको दे दिया।

शेखचिल्ली को बात समझ में आई- तो फिर अब मैं क्या करूं?

उनमें से चैथी परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई और उसके हाथ में एक डंडा आ गया।

परी ने वो डंडा शेखचिल्ली को दिया और बोली- ये जादूई डंडा है। झूठ बोलने वालों के सिर पर तब तक प्रहार करता रहता है जब तक कि वो सच न बोल दे। जाओ और जाकर व्यापारी को सबक सिखाओ।

शेखचिल्ली तमतमाता हुआ व्यापारी के घर पहुंचा। व्यापारी उसे देखकर बहुत खुश हुआ। उसको लगा कि आज फिर कोई नई जादूई चीज मिलेगी।

शेखचिल्ली ने जाते ही व्यापारी से सवाल दागा- क्या तुमने मेरी जादूई चीजें चुराई हैं।

व्यापारी डरते हुए बोला- ये तुम क्या कह रहे हो, मैं भला क्यों तुम्हारा सामान चुराऊंगा।

शेखचिल्ली बोला- सच बोल रहे हो?

व्यापारी- हां, मैं सच बोल रहा हूं।

शेखचिल्ली- इसका फैसला तो अभी हो जाएगा।

और उसने अपने जादूई डंडे को इशारा किया और डंडा अपने आप व्यापारी के सिर पर तड़ातड़ प्रहार करने लगा। व्यापारी हैरान, परेशान, डंडे के प्रहार से निकली जा रही थी उसकी जान।

पिटते-पिटते व्यापारी का कचूमर निकल गया। हारकर वो शेखचिल्ली के पैरों में गिर गया और बोला- भैया मैंने ही तुम्हारी चीजें चुराई हैं, इस डंडे से कहो कि मुझे न मारे मैं तुमको सब अभी वापस किए देता हूं।

डंडे ने अपना काम बंद कर दिया। व्यापारी ने अपने कमरे में से लाकर शेखचिल्ली को सारा असली सामान सौंप दिया।

शेखचिल्ली का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वो तेज कदमों से अपने गांव की ओर दौड़ा। घर पहुंचकर अपनी मां से लिपट गया।

लेकिन मां अभी भी उससे कल की बात पर नाराज थी।

शेखचिल्ली ने अपनी मां को मनाया। अपने टोकरे में हाथ डाला और एक खूबसूरत साड़ी मां के हाथों में रख दी। कढ़ाई में से स्वादिष्ट पकवान निकाले और मां को खिलाए। मां की आंखों में आंसू आ गए।

परियों के दिए सामान की मदद से मां और बेटे चैन की जिंदगी बिताने लगे।

नौकरी खोज। क्या पता कोई नौकरी मिल ही जाए!
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