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चुही और मेंढकी

चुही और मेंढकी

चुही और मेंढकी

एक बार एक मेंढकी को अपनी सहेली चुही की बहुत याद आई। उसने सोचा कि बहुत दिन हुए सहेली से मिले, क्यों न चुहिया के घर जाकर उसके हालचाल ले लिया जाएं। सो मेंढकी अपने तालाब से निकली और चुहिया के बिल पर जाकर दरवाजा खटखटाया।

चुहिया अचानक अपनी पुरानी सहेली को देखकर बहुत खुश हुई। वो खुशी-खुशी मेंढकी को अपने बिल में ले गई। दोनों सहेलियों ने खूब गप्पें लड़ाईं। चुहिया ने अपनी सहेली मेंढकी के लिए लजीज खाना बनाया। पूरा बिल खाने की खुशबू से महक उठा।

तभी मेंढकी ने अपनी सहेली से पूछा- ‘जीजा जी कहीं नजर नहीं आ रहे क्या कहीं बाहर गए हैं?’

इस पर चुहिया ने बताया- ‘वो बाहर बैठक में गए हैं। वहां चूहा समाज के लोग उनसे मिलने आए हैं। तुम चाहो तो जाकर उनको बुला लाओ। फिर मिलकर खाना खाएंगे।’

मेंढकी फुदकती हुई बैठक की ओर चल दी। वहां जाकर देखा तो वहां तमाम चूहे बैठक में बैठे थे।

मेंढकी ने आव देखा न ताव और अपने जीजा को छेड़ने के अंदाज में बोली- ‘ओ रे मूसा कोटी काटा, रूई बिगाड़ा, घर चल जल्दी घर चल।’

चूहे भरे समाज में इस तरह सुनकर बहुत गुस्सा आया। उसने गुस्से में जवाब दिया- ‘नाक की नकटी, कान की बूची घर जा ससुरी घर जा।’

ये सुनकर मेंढकी शर्म से पानी-पानी हो गई। और तमतमाती हुई वापस आकर जोर-जोर से रोने लगी।

उसकी सहेली चुहिया ने उससे पूछा- ‘क्या हुआ बहन ऐसे क्यों रो रही हो?’

मेंढकी ने जवाब दिया- ‘बहन तुम्हारे पति ने मेरा इतना अपमान किया है कि अब मैं जीना नहीं चाहती।’

चुहिया ने पूछा - ‘ऐसा क्या कह दिया मेरे पति ने।’

मेंढकी ने वो बात चुहिया को सुनाई जो चूहे ने उसको बोली थी।

चुहिया को सुनकर हैरानी हुई। उसने पूछा अब ये बताओ कि तुमने उनसे क्या कहा था?

मेंढकी ने वो बात भी बताई जो उसने बोली थी।

चुहिया को समझते देर न लगी। उसने मेंढकी से कहा कि तुमने भरे समाज में मेरे पति के लिए अच्छे शब्दों को प्रयोग नहीं किया। तुमको भी सही भाषा का प्रयोग करना चाहिए था। पहली गलती तुमने की।

इस पर मेंढकी शर्मिंदा हुई। उसने फिर अपनी सहेली से पूछा कि फिर किस तरह वो अपने जीजा को बुलाए।

तो चुहिया ने उसको बताया कि अब जाकर इस तरह बुलाना- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

मेंढकी फिर फुदकती हुई बैठक की ओर गई और वहां जाकर बोली- ‘भूरे दंत, कपूरे कंत, घर चलो बालम घर चलो।’

चूहे को मेंढकी का ये अंदाज पसंद आया और उसने कहा- ‘धूप पड़त है घाम पड़त है, घर चलो सजनी, घर चलो।’

दोनों जीजा-साली खुशी-खुशी घर आए। चुहिया ने सबको स्वादिष्ट खाना परोसा। फिर शाम को अपनी सहेली को विदा किया।
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