शेखचिल्ली के खुरपे को बुखार चढ गया
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एक बार घरवालों ने शेखचिल्ली को घास खोदने के लिए खुरपा दे कर जंगल भेज दिया। दोपहर तक उसने एक गठरी घास खोद ली और गठरी उठाकर घर चला आया। घरवाले बड़े खुश हुए। पहली बार शेखचिल्ली ने कोई काम किया था।
परंतु जब कई घंटे बीत गए तब शेखचिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गया था, वह तो वहीं रह गया है, जहाँ पर उसने घास खोदी थी।
तेज धूप में पड़ा-पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे जैसा तपता खुरपा मूठी से पकड़ा लेकिन मू्ठी भी गर्म हो चुकी थी। शेखचिल्ली घबरा गया।
‘अरे! खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है।’ मन-ही-मन शेखचिल्ली मुस्कुराता हुआ हकीम साहब के पास पहुंचा और बोला, ‘हकीम साहब, हमारे खुरपे को बुखार हो गया है। जरा दवाई दे दीजिए।’ हकीम साहब समझ गए कि शेखचिल्ली शरारत कर रहा है।
परंतु जब कई घंटे बीत गए तब शेखचिल्ली को याद आया कि घास खोदने के लिए जिस खुरपे को वह ले गया था, वह तो वहीं रह गया है, जहाँ पर उसने घास खोदी थी।
तेज धूप में पड़ा-पड़ा खुरपा गर्म हो गया था। चिल्ली ने चिलचिलाती धूप में पड़ा हुआ अपना गर्म तवे जैसा तपता खुरपा मूठी से पकड़ा लेकिन मू्ठी भी गर्म हो चुकी थी। शेखचिल्ली घबरा गया।
‘अरे! खुरपे को तो बुखार चढ़ गया है।’ मन-ही-मन शेखचिल्ली मुस्कुराता हुआ हकीम साहब के पास पहुंचा और बोला, ‘हकीम साहब, हमारे खुरपे को बुखार हो गया है। जरा दवाई दे दीजिए।’ हकीम साहब समझ गए कि शेखचिल्ली शरारत कर रहा है।
डाक्टर भी समझ गया कि बेव्कूफ़ है उन्होंने वैसा ही उत्तर दिया, ‘अरे हाँ, वाकई इसे तो बुखार है। जाओ जल्दी से इसे रस्सी से बाँधकर कुएँ में लटकाकर डुबकी लगवा दो। तब भी बुखार न उतरे तो इसे मेरे पास ले आना।’ शेखचिल्ली चला गया।
शेखचिल्ली ने रस्सी ने खुरपा बाँधा और उसे कुएँ में लटकाकर खूब गोते लगवाया। थोड़ी देर बाद उसने उसे ऊपर खींचा। खुरपा ठंडा हो चुका था। चिल्ली ने हकीम साहब को धन्यवाद दिया।
संयोगवश एक दिन हकीम साहब के दूर की एक रिश्तेदार को तेज बुखार हो गया था। वह बूढ़ी उन्हीं से अक्सर दवाई लेने आया करती थी। वह शेखचिल्ली के पड़ोस में ही रहती थी।
चिल्ली ने देखा कि तेज बुखार से तपती हुई उस सत्तर वर्ष की बुढ़िया को लोग हकीम साहब के पास ले जाना चाहते हैं। शेखचिल्ली को हकीम जी वाली तरकीब सूझी। उसने हकीम साहब का ही बताया हुआ नुस्खा उन्हें बताते हुए कहा कि, ‘हकीम साहब जो वहाँ बताएँगे, मैं यहीं बताए देता हूँ। दादीजान को तेज बुखार है। यह गरम खुरपे जैसी तप रही है। इसका सबसे अच्छा इलाज यह है कि इन्हें किसी कुएँ या तालाब में खूब अच्छी तरह डुबकी लगवाओ। बुखार नाम की चीज सदा के लिए दूर हो जाएगी। यह तरकीब मुझे हकीम साहब ने खुद बताई थी।’
लोगों ने शेखचिल्ली की बात मान ली और बुढ़िया को एक पीढ़े पर बैठाकर रस्सियों से बाँधकर कुएँ में लटका दिया। कुएँ के पानी में बुढ़िया को खूब डुबकियाँ लगवाई गईं। कई डुबकियाँ लगवाने के बाद जब बुढ़िया को बाहर निकाला गया तो वह ठंडी पड़ चुकी थी।
उसके प्राण-पखेरू उड़ गए थे। सभी लोग शेखचिल्ली पर बिगड़ उठे। बुढ़िया के घरवालों ने गुस्से में कहा, ‘तुमने तो दादीजान को मार ही दिया।’ शेखचिल्ली बोला, ‘मियाँ, मैंने केवल बुखार की गारंटी ली थी। अच्छी तरह देख लो, बुखार उतर गया है या नहीं।’
हकीम साहब का नुस्खा गलत नहीं है। यह उन्हीं की बताई हुई तरकीब है। खुद जाकर पूछ लो। तरकीब गलत होती तो इस बुढ़िया का बुखार न उतरता।’ लोग हकीम साहब के पास गए। हकीम साहब से पूछा गया तो उन्होंने चिल्ली के खुरपे के बुखार वाली बात बताते हुए कहा कि उन्होंने गर्म खुरपे को ठंडा करने के लिए चिल्ली को तरकीब बताई थी। बुढ़िया को बुखार था। उसे पानी में नहीं डुबाना चाहिए था। वह इंसान थी, खुरपा नहीं। शेखचिल्ली पर इस घटना के कारण घरवालों की बहुत डाँट पड़ी।
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