0000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000000
""WE WELCOMME YOU TO VISIT ON SHADI BANDHAN GOVT REGISTRED MATRIMONIAL SERVICE""Regd No:UDYAM-HR-04-0000530'' शादी बंधन मेट्रीमोनियल संस्था फ्री में बिना दान दहेज करवाएगी गरीब लडकियों की शादी हिदू, सिख, बनिया, खत्री, मजबी या ना कास्ट बार लड़की के दाज रहित रिश्ते व शादी का इंतज़ाम शादी बंधन संस्था वर पक्ष से करवाएगी या खुद करेगी 7400360075 पर पंजीकरण कराइए YOU CAN CONTACT US BY WHATSAPP 7400360075 OR BY VISIT US ON OUR OFFICE SHADI BANDHAN GROUP FATEHABAD Street No 9 Kirti Nagar Road Fatehabad
Type Here to Search Desired Profile or Tag !

जिद्दी रानी

जिद्दी रानी

राजा रानी तथा बकरा बकरी
पुराने समय की बात है कि एक राजा था  उस राजा को एक महातमा ने प्रसन्न हो कर जानवरों, कीट पतंगों और पक्षियों की बोली समझने का वरदान दे दिया, लेकिन एक शर्त भी भी रख दी कि यदि राजा ने किसी को भी इस बारे में बताया तो बताते ही राजा की उसी पल म्रत्यु हो जायेगी।

एक रात की बात है राजा अपनी रानी के साथ रात्री का भोजन ग्रहण कर रहा था, अचानक राजा ने देखा कि दो बडे मकोडे  राजा और रानी की थाली के बीच में घूम रहे थे। राजा को उनहे देख कर उत्सुकता हुयी कि जरा सुने की ये (कीडे)चींटियां आपस में क्या बात कर रही हैं। चींटा, चींटी से कह रहा था कि,

कीडा कीडी से-ओ कीडी तूने रानी की थाली से चावल का दाना उठा कर राजा जी थाली में क्यों डाल     दिया? रानी को पाप चढेगा, राजा को अपना जूठा खिलाने का।

 कीडी-हठ पगले! पति-पत्नी में जूठा खिलाने से पाप थोडी चढता है, प्यार बढता है, कीडी बोली।

यह सुन कर राजा को बडे जोर की हंसी आयी, और राजा जौर जौर से हंसने लगा। राजा को यह सोच कर आश्चर्य हुआ कि इतनी छोटी कीडी में भी समझ है। राजा को हंसते देख, रानी सोच में पड गयी कि क्या बातझै आज राजा को अपने आप ही बडी हंसी आ रही है। यह देख कर रानी से बगैर पूछे नही रहा गया

रानी बोली-आप आज बडा खिल खिला कर हंस रहे हैं, जरा हमें भी बताइये क्या हुआ?

राजा बोला-नहीं रानी कुछ नहीं, बस ऐसे ही।

राने- तो ऐसे ही हमें भी बता दीजिये हम भी थोडा हंस लेंगे, वैसे भी आपकी मां ने हमारा जीना  वैसे ही दूभर कर रखा है।   इस बहाने हमें भी हंसने का बहाना मिल जायेगा

राजा-नहीं-नहीं बस ऐसे ही हंसी आ गयी थी, कुछ खास बात नहीं है।

रानी-अरे! ऐसे ही आनी है तो हमें क्यों नहीं आ रही है। सत्य कहिये आप हमें देख कर हंसे थे ना।

राजा- नहीं बिलकुल नहीं, आपको देख को मैं कैसे हंस सकता हुं।

रानी-हमें देखकर आप कभी खुश हुए भी हैं ? तो जिसे देख के इतना प्रसन्न हो रहे थे, उसी का नाम बता दीजिये जरा हमे भी ।

राजा- अरे कुछ भी नहीं रानी साहिबा, आप तो बस पीछे ही पड गयी हैं, कोई बात नहीं है आप  भोजन कीजिये।



रानी-अब तो ऐसे ही कहंगे। हुंह!!!

रानी नाराज हो कर खाना अधूरा छोड कर ही चली गयी। रानी की नाराजगी की कारण राजा का मन भी खाना खाने का नहीं कर रहा था । लेकिन राजा तो शर्त से बंधा था कि वह उसके भाषा ज्ञान के बारे में किसी को बता भी नहीं सकता था। आज कल के जमाने की बात होती तो कुछ भी झूठ बोलकर पीछा छुडाया जा सकता था लेकिन उस समय में लोग झूठ नहीं बोलते थे, खासकर राजा या पढे लिखे व्यक्ति।

राजा अपने वस्त्र बदल जब रानी के कमरे में पहुंचे तो देखा रानी मुंह फ़ुलाये अपना मुंह दूसरी ओर कर के लेटी हुयी थी। राज ने जब रानी से बात करने का प्रयास किया तो रानी भडक गयी,

रानी- सबके सामने मेरी इन्सल्ट कर दी और अब बडा प्यार जता रहे हो।

राजा-अरे रानी हमें क्षमा कर दो, पर बात ही ऐसी थी कि हम आपको नहीं बता सकते थे।

रानी- अच्छा अब ऐसी-ऐसी बातें भी होने लगी जो आप हमें नहीं बता सकते।

राजा-क्यों व्यर्थ में हठ कर रही हैं, छोडिये बात को।

रानी-अच्छा हठ भी अब मैं ही कर रही हुं, इतनी ही छोटी बात है तो बता ही क्यों नहीं देते की बात क्या थी?

राजा-आप नहीं समझ पायेंगी रानी, छोडिये ना उस छोटी सी बात को, कितनी हसीन चांदनी रात है कितने सुंदर तारे खिले हुए हैं लगता है जैसे आपस में बातें कर रहे हो।

रानी- पीछे हटो, छूना मत मुझे। कोई आवश्यकता नहीं है मुझे आपकी , उसी के पास जाईये जिसको याद करके  इतना प्रसन्न हो रहे थे, मैं तो जिद करती हुं ना।

राजा-आप बात को गलत समझ रही हैं राने , ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हैं, वो तो बस छोटी सी बात थी।

रानी-अरे छोडिये जी, आपकी सारी छोटी-छोटी बातों का हमें ज्ञान है।

राजा- अरे अब तुम पुरानी बातें लेकर मत बैठ जाओ आज हम इस हसीन रात का लुतफ़ उठायेंगे।

रानी-मुझसे बात मत करो, जब तक मुझे सच-सच नहीं बताते कि आखिर माजरा क्या था।

राजा की समझ में नही आया कि अब वो क्या करे, तो उसने सोचा कि चलो थोडी नाराजगी ही तो है, कल सुबह तक ठीक हो जायेगी। लेकिन अगली सुबह भी रानी के मुंह की सूजन कम नहीं हुई, राजा ने बातचीत का कितना प्रयास किया और कितने प्रलोभन दिये पर रानी नहीं मानी। रानी के दिमाग में शक ने सुरंग बना ली थी। राजा जितना समझाने का प्रयास करता बात उतनी ही बिगडती जा रही थी।

रानी का हठ बडता ही गया, अपनी बात मनवाने को रानी ने खाना पीना भी छोड कर आसन पट्टी ग्रहण कर ली थी। एक सप्ताह हो चुका था, रानी का स्वास्थ्य भी कमजोर होता जा रहा था। राजा के समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे, एक तरफ़ कुंआ और दुसरी तरफ़ खाई वाली स्थिति हो गयी थी।

राजा के पास दो रासते थे या तो रानीकी जिद को पुरा करके उसे सारी बात बता दे और अपनी म्रत्यु को निमंत्रण दे दे

या फ़िर अपने प्राणप्रिय रानी को ऐसे ही तडपने दे। राजा ने रानी को मनाने लाख प्रयास कर लिये थे पर रानी तो हंसी का कारण जानना चाहती थी। आखिर थक हार के राजा ने रानी से अंतिम बार पूछा कि ?

 राजा-रानी मैं आपको वह बात बताने को तैयार हूं , परन्तु एक बात आप इसका लें इसका परिणाम बडा भयंकर होगा।   

          

रानी-मैं मर रही हुं, इससे बुरा क्या हो सकता है। मत बताओ।

राजा-रानी, इस बात को बताने से मेरे जीवन पर संकट आ सकता है।

रानी को लगा कि राजा बुद्धु बनाना चाह रहा है, रानी राजा पर व्यंग करते हुये बोली,

राजा के प्राण को संकट ? वो भी एक छोटी सी बात बताने पर?  फ़िर तो मेरा ही प्राण त्यागना उचित है। अपनी बात अपने पास ही रखिये, मेरे लिये थोडा सा विष मंगा दीजिये, अगर हमें आपसे कोई छोटी सी बात पूछने का अधिकार ही नही है अब तो ओर जीने का मन ही नहीं है।

राजा के समझ में नही आ रहा था कि एक छोटी से बात के लिये रानी कैसे अपने प्राण दे सकती है।

उलट राजा ही रानी के चलित्रो के आगे वशीभूत हो गया तथा राजा ने निश्चय किया कि वह रानी को सब बता देगा। साथ ही उसने सोचा कि जब मरना ही है तो किसी तीर्थ स्थान में जाकर प्राण त्यागने में ही भलाई है, कम से कम कुछ सद्गति हो प्रापत होगी।

अंतत: राजा ने हार मान ही ली, उसने रानी को बताया कि वह वह बात बताने को तैयार है जिसके कारण उसे हंसी आयी थी। रानी मन ही मन में बहुत खुश  हुई कि आखिर वह जीत गयी । राजा ने शर्त ये रखी कि वह बात हरिद्वार चल कर बतायेगा। रानी और भी अधिक खुश कि चलो यात्रा भी हो जायेगी, कब से राजा के साथ कहीं घूमने जाने का अवसर भी नहीं मिला था।


अंतत: राजा ने अपने  सभी मंत्रियो को बुलवा लिया ओर सारे हिसाब किताब मंत्रियों को समझा दिये व रानी को साथ लेकर यात्रा प्रारंभ की। पुराने समय में यात्राओं में लंबा समय लग जाता था अत: बीच-बीच में पडाव डाल के यात्रा पूरी की जाती थी। ऐसे ही एक जगह पर राजा और रानी के दल ने यात्रा के दौरान पडाव डाला हुआ था। एक बडे खेत के किनारे राजा खुले में शांत बैठे प्रकति का आनंद ले रहे थे। रानी भी कुछ दूर में ही बैठी थी, तभी राजा को थोडी दूर पर एक बकरा और बकरी दिखायी दिये। उन्हे देखकर राजा को फ़िर उत्सुकता हुयी कि देखें ये दोनो क्या बात कर रहे हैं। बकरा और बकरी दोनो रोमांटिक किस्म की बातें कर रही थे, राजा को सुनने में आनंद आ रहा था। वार्तालाप कुछ ऐसे था,

बकरा-मेरी बकरी, तेरी आंखों में तो मुझे अपनी ही शक्ल दिखायी देती है। ऐसा लगता है कि तुझे मेरे लिये ही जमीं पर भेजा गया है ।

बकरी - तेरे सदके जाउ मेरे बकरे , मुझे तो तु्झे पहली दफ़ा देखते ही पहली नजर में प्यार हो गया था। अच्छा एक बात बता तु मेरे लिये क्या कर सकता है?

बकरा-तेरे लिये तो मैं कुछ भी कर सकता हुं, मेरी जान, तू कह के देख तो सही, तू कहे तो तेरे लिये आसमान से तारे तोड कर भी ला सकता हूं।

बकरी-अरे नहीं, आज मेरा मन हरी-हरी घास खाने का मन कर रहा है, मेरे लिये ला ना।

बकरा-ले अभी ले, मगर ये तो बतादे कि कौन सी घास खाने को मन कर रहा है , नदी के पार वाली या फ़िर उस मकान के पीछे से, तू बता तुझे कौन सी अधिक पसंद है।

बकरी-जरा इत्राकर बोली वो नहीं मेरे लिये तुम वो घास  लाओ जो कुएं के अंदर उग रही है, वो घास आज तक किसी बकरी ने नहीं खायी है। आज मेरी उस लाल बकरी से शर्त से लगी है कि तु  मेरे लिये वह घास ला सकता है। देख आज मेरी इज्जत का सवाल है बकरु, यदि तूने मना कर दिया तो आज में उस लाली से हार जाउंगी अगर मै हार गई तो मै प्राण तयाग दूंगी।

राजा यह वार्तालाप सुन कर मन ही मन हंस रहा था कि देखो बकरी भी रानी की तरह ही  कैसे अपनी शर्त मनवा रही है। तभी बकरा बोला,

अरे जानु, कुछ और मांग ले, कुएं के अंदर तो मैं जा तो सकता हूं पर बाहर कैसे आउंगा। मैं कोई मनुष्य तो नहीं हूं।

अच्छा प्यार करते समय तो डायलाग बडे आदमियों वाले मारते हों, बडा कह रहे थे कि आसमान से तारे तोड लाउंगा। अब लाओ घास।    

अरे प्यारी बकरी बात तो समझ, ऐसा कैसे संभव हैं, मैं घायल हो जाउंगा तथा मेरी जान भी जा सकती है।

मैं कुछ नहीं जानती बकरे, अगर तु ला सकता है तो ला, वरना हमारा ब्रेकअप निश्चित है, मेरी अपनी भी कुछ ईज्जत है।

ऐसा सुन कर बकरे को मन ही मन तो बहुत क्रोध आया, पर फ़िर भी बोला, चल दिखा कहां पर है, मैं लाता हूं।

कुंआ नजदीक ही था, बकरी बकरे तो लेकर कुंऐ की मुंडेर पर पहुंची और दिखाने लगी कि वो वाली हरी हरी घास। बकरे ने बकरी को एक जोर का झट्का दिया और कहा हट्ट ! इतना कहते बकरे की कडी फ़टकार सुनते ही बकरी मिमयाने लगी नही जानू आप तो गुस्सा कर गये मैं तो सिर्फ़ आपकी परीक्षा ले रही थी.        

बकरा बोला कि तू क्या अपने आपको कया समझती है तेरे इस घास के लिये मैं अपनी जान को जोखिम में डाल लूं। तूने मुझे क्या उस राजा की तरह समझा हुआ है जो अपनी पत्नी की जिद के आगे अपनी जान देने पर तुला है।

राजा ने जब ये सुना पहले तो मुस्कुराया और फ़िर शर्म से पानी-पानी हो गया। उसके समझ में आ गई कि अगर बकरा अपनी प्रेमिका को मना सकता है मगर मैं एक राजा हो कर भी अपनी अर्धान्गी से हारने जा रहा हूं, राजा उसी क्षण उठा और रानी से बोला की रानी मै तुझे अंतिम बार पूछ रहा हू कि घर चलना है या नही रानी बोली,

          

            पहले तुम्हारे हंसने का कारण तो बताओ?

          

राजा ने गुस्से से कहा, ‘हट्ट!!!  चलना है तो चल नहीं तो बैठ यहीं पर'।

रानी भी समझ गयी कि अब दाल गलने वाली नही है, अगर मानेगी तो ठीक नही तो बकरी वाली बनेगी ओर यहां पर कोई छुड्वाने वाला भी नही है तो वो बोली,

            अरे आप तो नाराज हो गये, मैं तो मजाक कर रही थी। चलिये घर चलते हैं।

ओर दोनो प्रेम सहित हंसते खेलते वापिस अपने महल आ गये ।

Print Friendly and PDF

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad