मिथलावती नाम की एक नगरी थी। उसमें गुणधिप नाम का राजा राज करता था। उसकी सेवा करने के लिए दूर देश से एक राजकुमार आया। वह राजा से भेंट की बराबर कोशिश करता रहा, लेकिन राजा से उसकी भेंट न हुई। जो कुछ वह अपने साथ लाया था, वह सब खतम हो गया।
एक दिन राजा शिकार खेलने चला। राजकुमार भी साथ हो लिया। चलते-चलते राजा एक वन में पहुँचा। वहाँ उसके नौकर-चाकर बिछुड़ गये। राजा के साथ अकेला वह राजकुमार रह गया। उसने राजा को रोका। राजा ने उसकी ओर देखा तो पूछा, कि तूं इतना कमजोर क्यों है। उसने कहा,कि इसमें मेरे कर्म का दोष है। मैं जिस राजा के पास रहता हूँ, वह हजारों को पालता है, पर उसकी निगाह मेरी और नहीं जाती। राजन छ: बातें आदमी को हल्का करती हैं—खोटे नर की प्रीति, बिना कारण हँसी, स्त्री से विवाद, असज्जन स्वामी की सेवा, गधे की सवारी और बिना संस्कृत की भाषा। और हे राजा, ये पाँच चीज़ें आदमी के पैदा होते ही विधाता उसके भाग्य में लिख देता है—आयु, कर्म, धन, विद्या और यश। राजन जब तक आदमी का पुण्य उदय रहता है, तब तक उसके बहुत-से दास रहते हैं। जब पुण्य घट जाता है तो भाई भी दुश्मन हो जाते हैं। पर एक बात है, स्वामी की सेवा बेकार नहीं जाती। कभी न कभी फल मिल ही जाता है।
यह सुन राजा के मन पर इसका गहरा असर हुआ। कुछ समय घूमने-घामने के बाद वे नगर में लौट आये। राजा ने उसे अपनी नौकरी पर रख लिया। उसे बढ़िया से बढ़िया कपड़े और अन्य सभी सहूलियत दे दिये।
एक दिन राजकुमार किसी काम से कहीं गया। रास्ते में उसे देवी का मन्दिर मिला। उसने मंदिर मे जाकर देवी की पूजा अर्चना की। जब वह बाहर निकला तो देखता है कि उसके पीछे पीछे एक अतिसुन्दर स्त्री चली आ रही है। राजकुमार उसे देखते ही उसकी ओर आकर्षित हो गया। स्त्री ने कहा, कि तुम कुण्ड में स्नान कर के आओ फिर जो भी तुम कहोगे, वही करूँगी।
इतना सुनकर राजकुमार कपड़े उतारकर जैसे ही कुण्ड में घुसा और गोता लगाया कि अपने नगर में पहुँच गया। उसने जाकर राजा को सारा हाल कह-सुनाया। राजा ने कहा, यह अचरज मुझे भी दिखाओ।
दोनों घोड़ों पर सवार होकर देवी के मन्दिर पर आये। अन्दर जाकर दर्शन किये और जैसे ही बाहर निकले कि वह स्त्री प्रकट हो गयी। राजा को देखते ही बोली, हे महाराज, मैं आपके रूप पर मुग्ध हूँ। आप जो कहेंगे, वही करुँगी।
राजा ने कहा, ऐसी बात है तो तू मेरे इस सेवक से विवाह कर ले।
स्त्री बोली, यह नहीं हो सकता क्योकि मैं तो सिर्फ़ तुम्हें चाहती हूँ।
राजा ने कहा, सज्जन लोग जो कहते हैं, उसे निभाते हैं। तुम अपने वचन का पालन करो देवी । इतना सुनते ही वो मान गई ओर राजा के सेवक से शादी करने को तैयार हो गई ।
इसके बाद राजा ने उसका विवाह अपने सेवक से करा दिया।
इतना कहकर बेताल बोला, हे राजन् ! यह बताओ कि राजा और सेवक, दोनों में से किसका काम बड़ा हुआ?
राजा ने कहा, नौकर का।
बेताल ने पूछा, सो कैसे?
राजा बोला, उपकार करना राजा का तो राज धर्म ही था। इसलिए उसके उपकार करने में कोई खास बात नहीं हुई। लेकिन जिसका धर्म नहीं था, उसने उपकार किया तो उसका काम बढ़कर हुआ ।
इतना सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका और राजा जब उसे पुन: लेकर चला तो उसने छ्ठी कहानी सुनायी। कलम का तिलक इंटरनैशनल न्यूज पोर्टल से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक ग्रुप और गूगल प्लस पर ज्वॉइन करें फेसबुक पर लाईक करें, टविटर पर फॉलो करे बच्चों की हिन्दी मनोहारी कहानीयां पढने के लिये यहां कलिक करें