राजा कृष्णदेव राय का घोड़ा अच्छी नस्ल का था इसलिए उसकी कीमत ज्यादा थी। तेनालीराम का घोड़ा मरियल था। तेनाली राम उसे बेचना चाहते थे, पर उसकी कीमत बहुत ही कम थी। वह चाह कर भी बेच नहीं पाते थे।
![तेनालीराम का घोड़ा तेनालीराम का घोड़ा](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj-C6WEY1p2tCsHjau9OTus1zdoV7-jPBA3BDvKejoVa_JPSHM7-WVToosamX-veNFioo3uONO3CIdP9bTo9-zP360YxiWMZUzUMG1GNHW4mQaRu93suaXn_TxmRqbB-eoenE0JCTQCKa2k/s1600/index.jpg)
तेनाली राम ने राजा को जवाब दिया, “महाराज जो मैं अपने घोड़े के साथ कर सकता हूं वह आप अपने घोड़े के साथ नहीं कर सकते।”
राजा मानने को जरा भी तैयार नहीं थे। दोनों के बीच सौ-सौ स्वर्ण मुद्राओं की शर्त लग गई।
दोनों आगे बढ़े। सामने ही तुंगभद्रा नदी पर बने पुल को वे पार करने लगे। नदी बहुत गहरी और पानी का प्रवाह तेज था। उसमें कई जगह भंवर दिखाई दे रहे थे। एकाएक तेनालीराम अपने घोड़े से उतरे और उसे पानी में धक्का दे दिया।
उन्होंने राजा से कहा, “महाराज अब आप भी अपने घोड़े के साथ ऐसा ही कर के दिखाइए।” मगर राजा अपने बढ़िया और कीमती घोड़े को पानी में कैसे धक्का दे सकते थे। उन्होंने तेनाली राम से कहा, “न बाबा न, मैं मान गया कि मै अपने घोड़े के साथ यह करतब नहीं दिखा सकता, जो तुम दिखा सकते हो।” राजा ने तेनाली राम को सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दीं। “पर तुम्हें यह विचित्र बात सूझी कैसे?” राजा ने तेनाली राम से पूछा।
“महाराज, मैंने एक पुस्तक में पढ़ा था कि बेकार और निकम्मे मित्र का यह फायदा होता है कि जब वह नहीं रहे, तो दुख नहीं होता।” तेनाली राम की यह बात सुनकर राजा ठहाका लगाकर हंस पड़े।
![Print Friendly and PDF](http://cdn.printfriendly.com/buttons/printfriendly-pdf-email-button.png)